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अजंता गुफाओं के भित्तिचित्र

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मनुष्य का पहला घर है। हवा, पानी और धूप से बचने के लिए इंसान ने पहाड़ियाें में प्राकृतिक रूप से बने झरनों में शरण ली। बालिकाओं में रहते हुए इन वृक्षों के दिवारों और छतों पर मनुष्य अत्यंत सुंदर चित्र बनायें। भारत में कम से कम 10,000 ऐसी जगहें हैं जहां पत्तियों में ग्राफ्टिंग पायें गए हैं। इन जगहों पर सबसे प्रमुख हैं अजंता की छुट्टियां जिन्हें देखने का अवसर मुझे 2005 में मिला था जब हम परिवार के साथ मराठवाड़ा का दौरा किया था। अजंता गुफाओं के भित्तिचित्रों का कलाविष्कार अचंभित करने वाला था। अजंता की पत्तियां  महाराष्ट्र औरंगाबाद जिले में अजंता गांव में वाघोरा नदी के किनारे लगभग 76 मीटर की उंचाई पर ये बालियां स्थित हैं। सह्याद्रि पर्वत में घोड़े की नाल के आकार में इन बालियों का निर्माण हुआ है। सन 1819 में एक ब्रिटिश हंटर जाॅन स्मिथ ने इन छुट्टियों का अन्वेषण किया। छोड़ने की कुल संख्या 29 थी लेकिन वर्तमान में केवल 6 शेष अर्थात 1, 2, 9, 10, 16 ,17 अस्तित्व में हैं।  अजंता पत्तियां  यह फ़ॉर्मैट  क्रिएटिव कॉमन्स  एट्रिब्यूशन-शेयर एलिक 3.0 अनपोर्टेड  लाइसेंस के...

भारतीय कठपुतलि जगत

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'जहाँ मैं जाती हूँ वहीं चले आते हो...'! 'कठपुतलियाँ' शब्द सुनते हि,  मुझे  'चोरी चोरी' फिल्म  यह  का गाना याद आता है जिसमें राज कपूर और नरगिस हुबहू कठपुतलियों की तरह नाचते हैं। बहुतों ने इस गाने के जरिए पहली बार कठपुतलियों को जाना। विभिन्न कलाओं का मिश्रण  कठपुतली कला एक प्राचीन कला है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दीमें महाकवि पाणिनी के अष्टाध्यायी ग्रंथ में पुतला नाटक का उल्लेख मिलता है। कठपुतली कला के प्रदर्शन में किसी विषय को लकडी की पुतलियों का उपयोग करके नाटक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है अतः संवाद लेखन महत्वपूर्ण है। नाटक के किरदारों के अनुरूप उनकी वेशभूषा होती है। कठपुतलियों के चेहरे मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनें होते हैं और उन्हें किरदारों के अनुरूप सजाया जाता हैं। प्रसंगों के अनुसार नेपथ्य की चित्रकारी होती है। इसतरह कठपुतली कला में गीत, संगीत और नृत्य के साथ साथ नाटक, लेखन, काष्ठकला, मूर्तिकला, चित्रकला, रूपसज्जा आदि विभिन्न कलाओं का मिश्रण होता है। भारतीय पुतली कला के प्रकार धागा पुतली: कठपुतली के अलग-अलग अंगों को कुछ इसप्रकार जोड़ा जाता है ताकि प्र...

डाॅ. रखमाबाई राऊत, मूर्तिमंत साहस

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  डाॅ. रखमाबाई राऊत   कुछ दिनों से यह विषय प्रसार माध्यमोंमें चर्चा में है कि महिलाओं की सहमति आयु अठारह से बढाकर इक्कीस कर देनी चाहिये। एक विचार अनायास ही मन में आया कि अपने भारत में तो बालविवाह की कुप्रथा रही है फिर यह सहमति आयु का मुद्दा किसने उठाया होगा? क्या संघर्ष रहा होगा इसके पीछे? इस बात के मूल में जाने के प्रयास में जो नाम सामने आये उनमें एक नाम मै पहले से जानती थी लेकिन किसी दूसरे संदर्भ में। वह नाम था डाॅ. रखमाबाई राऊत। प्रथम भारतीय महिला प्रैक्टिसिंग डाॅक्टर वैसे तो प्रथम भारतीय महिला डाॅक्टर के तौर पर डाॅ. आनंदीबाई जोशी का नाम लिया जाता है परंतु दुर्भाग्यवश डाॅक्टर बनने के बाद जल्द ही उनकी मृत्यु होने के कारण वे प्रैक्टिस नही कर पाई। उनके बाद चिकित्सक बननेवाली डॉ. रखमाबाई राउत, भारत में डॉक्टर के रूप में व्यवसाय करने वाली पहली महिला के रूप में जानी जाती है। गुगल इंडिया ने 1 जुलाई 2018 को डाॅक्टरस् डे डुडल डाॅक्टर रखमाबाई राऊत के सन्मान में प्रदर्शित किया था। प्रारंभिक जीवन  रखमाबाई की कहानी मुंबई में शुरू होती है जहाँ 22 नवंबर 1864 को पिता जनार्दन सावे और मा...

अष्टांगिक मार्ग

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मनुष्य को जीवन में दुखों का सामना करना पड़े यह बात स्वाभाविक है और जिस तरह इन दुखों का कोई कारण होता है उसी तरह उनका निवारण भी अवश्य होता है। दुखों के निवारण के लिए बुद्ध ने हमें अष्टांगिक मार्ग बताया। अष्टांगिक मार्ग को पाली भाषा में 'अरिअगिका मग्गा' कहते है और जैसा कि नाम से हि स्पष्ट है, अष्टांगिक मार्ग में आठ तत्वों का समावेश है। धम्मचक्र अष्टांगिक मार्ग को बौद्ध प्रतीकों में 'धम्मचक्र' के माध्यम से दर्शाया जाता है। बौद्ध प्रतीक 'धम्मचक्र' में आठ आरियाँ या तिलियाँ होती हैं। धम्मचक्र की आठ आरियाँ अष्टांगिक मार्ग के आठ तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं। धम्मचक्र सम्यक् तत्वज्ञान  अष्टांगिक मार्ग को बौद्ध वाङमय में कुछ जगहों पर सम्यक् तत्वज्ञान भी कहा गया है। सम्यक् को पाली भाषा में कहते है 'संमा'। सम्यक् या संमा का अर्थ है सही। अर्थात अष्टांगिक मार्ग हमें ऐसे आठ तत्वों से या सही  तरीकों से अवगत कराता है जिन्हें अपनाने से हम अपने दुखों का निवारण कर सकते है। अष्टांगिक मार्ग में समाविष्ट आठ तत्व   सम्यक् दृष्टि:   किसी भी बात को पूर्वाग्रहरहित दृष्टि से देख...