भारतीय लोकनृत्य
आनंद की अभिव्यक्ति का एक साधन है नृत्य। विवाह हो या बच्चे का जन्म, कोई त्यौहार हो या फसल की कटाई, लोग जब आनंदित होते हैं तब सब मिलकर नृत्य अवश्य ही करते हैं। अतः लोकनृत्य भारतीय लोककलाओं का एक अहम अंग है।
फसल की कटाई पर नृत्य:
काश्मीर में जब फसल कटती है तब स्त्रियाँ एक दूसरे की कमर में हाथ डालकर सुन्दर पदन्यास के साथ रऊफ नृत्य करतीं हैं। हिमाचल प्रदेश में फसल कटाई पर स्त्री-पुरूष, बच्चे-बूढ़े सभी बीच में आग जलाकर उसके चारों ओर घूमते हुए नाटी नृत्य करते हैं। बैसाखी पर सर्दियों की फसल कटने की खुशी में किया जानेवाला पंजाब का भांगड़ा भारत का सबसे लोकप्रिय लोकनृत्य है। बैसाखी और लोहड़ी पर होने वाले भांगड़ा में स्त्रियाँ शामिल नहीं होती। वे अलग आँगन में अलाव जलाकर गिद्धा नृत्य करतीं हैं। शादियों और बारातों में भी भांगड़ा और गिद्धा रौनक लगाते हैं। उत्तर पूर्व के असम में जब फसल तैयार होती है तब बिहु त्यौहार मनाते हैं और बिहु नृत्य कीया जाता है जिसमें स्त्री पुरूष दोनों ही हिस्सा लेते हैं परंतु महिलाओं के बिहु में अधिक विविधता पाई जाती हैं।
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भांगड़ा नृत्य Image by Brendan is licensed under Creative Commons Attribution 2.0 Generic (CC BY 2.0) license |
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बिहु नृत्य Image by Musta firoj ahmed is licensed under Creative Commons Attribution-Share Alike 4.0 International license |
भक्ति रस के नृत्य:
उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के लोकनृत्य रासलीला के बारे में कहा जाता है कि श्रीकृष्ण गोपियों के साथ शरद पूर्णिमा की रात को किया करते थे। कृष्ण जन्माष्टमी और होली पर होने वाली रासलीला का आनंद मथुरा वृंदावन में हि सीमित न रहकर गुजरात और राजस्थान में भी प्रचलित है। वैसे रासलीला, मणिपुर का शास्त्रीय नृत्य 'मणिपुरी' का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। मणिपुरी रासलीला नर्तकियों की विशेष वेशभूषा के कारण भी अनोखी लगती है जिसमें वे सिर पर सफेद पारदर्शी परदा और नीचे कशीदाकारी किया हुआ लहंगा पहनती हैं। नाचते समय यह लहंगा पूरा का पूरा बड़े सुन्दर तरीके से हिलता हैं।
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मणिपुरी शास्त्रीय नृत्य में रास लीला Image by Matsukin is licensed under Creative Commons Attribution 2.0 Generic license |
अश्विन मास की नवरात्रि में गुजरात में होने वाला डांडिया रास तो अब पूरे भारत में किया जाता है। स्त्री पुरूष दोनों ही रंग बिरंगी पारंपरिक वेशभूषा में सजधजकर ज़ोशपूर्ण तरीके से गोलाकार घूमते हुए डांडिया करते हैं। इन्हीं शारदिय नवरात्रि में किया जानेवाला और एक लोकनृत्य का प्रकार है- गरबा। देवी के सामने सछिद्र घट में दीप जला कर, उसे सजा कर, उसके चारों ओर घूमते हुए स्त्रियाँ गरबा करती हैं। देवी के गीत या कृष्णलीला के गीत गाते हुए, कई आवर्तन करते हुए गरबा किया जाता है।शारदिय नवरात्रि के महापर्व को पश्चिम बंगाल में बहुत महत्व है। यहाँ सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन देवी के सामने धुनुची नृत्य होता है। मिट्टी के छोटे छोटे हवनकुंडों में नारियल की जटाएँ व रेशें और हवन सामग्री जलाकर धुनी जलाते हैं और उन्हें दोनों हाथों में लेकर घूमते हुए धुनुची नृत्य किया जाता है।
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गरबा नृत्य Image by anurag agnihotri is licensed under Creative Commons Attribution 2.0 Generic license |
युद्ध नृत्य:
पश्चिम बंगाल और ओडिशा का ही एक और लोकनृत्य है - छाऊ नृत्य जो एक आदिवासी युद्ध नृत्य है। छाऊ नृत्य केवल पुरुष करते हैं और इसे करते समय मुखौटे पहनते हैं। नर्तकों के दो समूहों के बीच पौराणिक कथाओं के किसी विवाद को दर्शाया जाता है। मुखौटा नृत्य तो लेह और लद्दाख में भी होता है और अरूणाचल प्रदेश का मुखौटा नृत्य भी प्रसिद्ध है जिसे बारडो छम कहते है। कलाकार रंग-बिरंगे मुखौटे पहनकर संगीत के साथ अच्छे और बुरे के बीच युद्ध का प्रदर्शन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि मुखौटा नृत्य का मूल केरल के शास्त्रीय नृत्य 'कथकली' में है जिसमें नर्तकों के चेहरों को रंग दिया जाता है।
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छऊ नृत्य Image by Biswarup Ganguly is licensed under Creative Commons Attribution 3.0 Unported license |
महिलाओं के खेल और नृत्य:
वैसे केरल का लोकनृत्य है कैकोट्टीकली जिसे तिरूवातिरकली भी कहते है। यह एक महिलाओं का समूह नृत्य है जिसमें शारीरिक खेल भी शामिल होते हैं। इस से याद आती है महाराष्ट्र के भोंडला की जो महिलाओं के शारीरिक खेल और नृत्य का सुंदर मिश्रण है। महाराष्ट्र के लावणी और कोली नृत्य तो चित्रपटों की वजह से सबके जाने पहचाने हैं। महाराष्ट्र की वारली जनजाति द्वारा किया जाने वाला तारपाँ नृत्य भी बड़ा हि मनमोहक है।
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तिरुवतिराकली नृत्य Image by Jigesh at Malayalam Wikipedia is licensed under the Creative Commons Attribution-Share Alike 3.0 Unported license |
अन्य नृत्य:
नागालॅण्ड की कुकी जनजाति द्वारा किया जाने वाला बाँस नृत्य भी हम नहीं भूल सकते। कुछ नर्तक हाथों में लंबे बाँस लेकर उन्हें जमीन पर जाल जैसे बिछाते हैं। वे इन बाँसों को तालबद्ध तरीके से हिलाते रहते हैं और कुछ नर्तक इसी ताल पर उस जाल में पैर रखते-उठाते हुए कुशलतापूर्वक नृत्य करते हैं।
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बाँस नृत्य Image by Choo Yut Shing is licensed under the Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 2.0 Generic license |
राजस्थान में घूमर है तो हरियाणा में झूमर। झारखंड में तो झूमर के तीन प्रकार हैं- अग्नि झूमर, मर्दानी झूमर और जनानी झूमर। मध्यप्रदेश में जवारा और खाडा नाचा, छत्तीसगढ़ में राऊत नाचा और गौर मारिया, सिक्किम का स्नो लायन नाच और खुखरी नाच, त्रिपुरा का होजागिरी, मेघालय का शादसुक और लाहो। कितने सारे प्रकार हैं लोकनृत्य के। सभी एक से बढ़कर एक। नृत्य का प्रयोजन कुछ भी हो, कभी भक्ति भाव का प्रदर्शन या कभी पराक्रम का गौरव तो कभी आनंद का उत्सव। सब एक दूसरे का हाथ पकड़ कर, थिरकते कदमों से एक दूसरे का साथ देते हैं ।
Wow नृत्य की इतनी विविधता ..देखकर,जानकर मन हर्षित हो गया । नृत्य देखना स्वयम में पुलकित कर देता है हमें..हर जगह की अपनी विशेषता देखने को मिलती है ।बहुत सहज व पूर्ण जानकारी..👌
जवाब देंहटाएंInteresting information.
जवाब देंहटाएंExcellent. Very well written
जवाब देंहटाएंबहोत सुंदर।
जवाब देंहटाएंVery nice information about various dance types.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी,शुक्रिया भाभी
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