बुद्ध का उपदेश - अत्त दीपो भव।





यह तो सर्वश्रुत है कि गौतम बुद्ध ने विश्व को सत्य, अहिंसा और शांति का संदेश दिया। सांसारिक सुखों का मोह त्याग कर, सांसारिक दुखों से अलिप्त रहने की बात उन्होंने कही। स्थित-प्रज्ञ हो कर जीवन यापन का मार्ग भगवान बुद्ध ने दिखाया।

कपिलवस्तु के महाराजा शुद्धोधन तथा महारानी महामाया के पुत्र सिद्धार्थ का जन्म कपिलवस्तु से दस मील दूर लुंबिनी वन मे ईसा पूर्व 563 मे हुआ। उनके जन्म के सातवें दिन महारानी महामाया की मृत्यु हुई अतः राजकुमार सिद्धार्थ का लालन-पालन उनकी मौसी गौतमी ने किया इसलिये राजकुमार सिद्धार्थ गौतम के नाम से भी जाने जाते है।


जीवन में जरा-मरण के दुःखों से व्यथित होकर, इन दुखों से मुक्ति का मार्ग खोजने के लिए उन्होंने अपना राजपाट, पत्नी यशोधरा तथा पुत्र राहुल का त्याग कर सन्यास का मार्ग अपनाया। वर्षों की तपस्या के बाद बौधगया मे ज्ञान प्राप्त करने के उपरांत वे भगवान बुद्ध कहलाये। वह पीपल का वृक्ष जिसके नीचे वे उस समय ध्यान धारणा कर रहे थे उसे बोधिवृक्ष कहते है।

भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ मे केवल पाँच अनुयायियों के समक्ष दिया। धीरे धीरे अनुयायियों की संख्या बढती गई। उनके पिता शुद्धोधन और बाद मे पुत्र राहुल भी उनके अनुयायी बने। भगवान बुद्ध के उपदेशों में पंचशील, चार आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग का समावेश है जिसके प्रत्येक विषय की व्याप्ति अत्यंत विस्तृत होते हुए भी वे जीवन जीने का अत्यंत सरल और आडंबर रहित मार्ग बताते हैं।


चार आर्यसत्य:
1. दुःख - संसार में दु:ख है।
2. समुदय - दुःख के कारण हैं।
3. निरोध - दुःख के निवारण हैं।
4. मार्ग - निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग है।

अष्टांगिक मार्ग:

1. सम्यक् दृष्टि - अपनी धारणा को बीच में न लाते हुए वस्तुओं को उनके वास्तविक रूप में जागरूकता से देखना।
2. सम्यक् संकल्प - जो उचित है उसे करने का संकल्प करना। हठधर्मी न करना।
3. सम्यक् वचन - उचित या अनुचित, जो जैसा है वैसा ही बोलना। अंदर कुछ और बाहर कुछ और ऐसा नहीं करना।
4. सम्यक् कर्म - किसी के दबाव में न आकर अपने मन को जो उचित लगे वह करना परंतु स्वच्छंदता न आने पायें।
5. सम्यक् आजीविका - अपनी आजीविका उचित मार्ग से स्वयं कमाना।
6. सम्यक् व्यायाम (प्रयास) - किसी भी काम को करने के लिए आवश्यक प्रयास करना।
7. सम्यक् स्मृति - अच्छी बातें याद रखना और बुरी बातें मन से निकाल देना।
8. सम्यक् समाधि - शुद्ध मन से, पूर्ण चेतना के साथ आनंद एवं शांति का अनुभव करना जो विपश्यना से संभव है।

पंचशील: संयमित जीवन जीने के लिए भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायियों को पंचशील अर्थात पाँच नियम बतायें। प्राणीमात्र पर दया करना, चोरी न करना, व्यभिचार न करना, झूठ नहीं बोलना और मद्यपान एवं अन्य नशीले पदार्थों का सेवन न करना।

प्रज्ञा, शील और करूणा का उपदेश मानव जाति को देनेवाले गौतम बुद्ध ने कभी यह नहीं कहा कि जो उन्होंने कहा है उसे ही सत्य मानो। बल्कि आप अपनी तर्कबुद्धि, अनुभव और विज्ञान के आधार पर सत्य को जानो फिर उसपर अमल करो।

भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण ईसा पूर्व 483 में हुआ।गौतम बुद्ध के अंतिम क्षणों में, जब वे मृत्यू शय्या पर थे तब उनके प्रिय अनुयायीयोंने अत्यंत दुःख के साथ उनसे पूछा, "भगवन्, जब आप नही होंगे तब हमारा मार्गदर्शन कौन करेगा?" इस पर भगवान  बुद्ध का उत्तर था, "अत्त दीपो भव।" "अपने दीपक स्वयं बनो" अर्थात अपने मार्गदर्शक स्वयं बनो। अपना मार्ग अपने आप ढूंढो।
आज जब हम आत्मनिर्भरता की बात कर रहे हैं तब भगवान बुद्ध के यह उपदेश जो उन्होंने सदियों पहले दिये थे, खासकर अंतिम उपदेश, अत्यंत सार्थक और औचित्यपूर्ण  लगता है। आत्मनिर्भरता का प्रथम चरण है 'अत्त दीपो भव'।

टिप्पणियाँ

  1. महात्मा बुद्ध के सम्पूर्ण जीवन-वृत को बहुत सहज,स्पष्ट व सुंदर शब्दों में लिखा ।बधाई

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  2. सहज और सरल भाषा का प्रयोग करके आपने बुद्ध के उपदेश समझना आसन कर दिया. धन्यवाद और आपको बधाई.

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