बाघ की बौद्ध गुफाएं
बाघ की बौद्ध गुफाएं क्रमांक 1-7 |
भारत की गुफाओं में बंदिस्त कलाविष्कार की श्रृंखला में आज हम बात करते हैं बाघ की बौद्ध गुफाओं की।
गुफाओं का स्थान
बाघ की बौद्ध गुफाएं मध्य प्रदेश के धार जिले में कुक्षी तहसील के अंतर्गत बाघिनी नामक एक छोटी नदी के तट पर विंध्य पर्वत के दक्षिण ढलान पर स्थित है। विंध्य पर्वत का यह हिस्सा मालवा क्षेत्र में आता है। बाघिनी नदी के नाम से हि गाँव का और गुफाओं का नाम बाघ पडा है। ये गुफाएं धार से 97 किमी और इंदौर से 60 किमी दूरी पर इंदौर और वडोदरा के बिच स्थित है।कुक्षी से गुफाओं का अंतर 18 किमी है। निकटतम रेल्वे स्टेशन मेघानगर है जो इन गुफाओं से 82 किमी दूर है। सड़क मार्ग से गुफाओं तक बस या टैक्सी से सरलता से पहुँच सकते हैं।
गुफाओं का निर्माण
बाघ की इन गुफाओं के लिये गुफा शब्द भी थोड़ा असंगत है क्योंकि ये प्राकृतिक नही हैं अपितु अजंता की गुफाओं की तरह हि भारतीय शैल कर्तित स्थापत्य कला का उत्तम उदाहरण है। साथ ही अजंता गुफाओं के भित्तिचित्रों की तरह बाघ की इन गुफाओं के भित्तिचित्र उत्कृष्ट कलाकारी के लिए प्रसिद्ध हैं।
बाघ की इन गुफाओं का निर्माण संभवतः पाँचवी या छठीं सदी में हुआ होगा। ऐसा माना जाता है कि बाघ की इन गुफाओं का निर्माण बौद्ध भिक्षु दात्रक द्वारा किया गया था। इन्हीं गुफाओं से प्राप्त 416- 17 ईसवी में अभिलेखित एक ताम्रपत्र में यह उल्लेख पाया गया है कि महिष्मती अर्थात महेश्वर के महाराज सुबंधु द्वारा इन गुफाओं में विहार के निर्माण के लिए अनुदान दिया गया था। अभिलेख में इस विहार को कल्याण विहार कहा गया है। साथ हि महाराज सुबंधु द्वारा ग्रामवासियों को यह आदेश भी दिया गया है कि वे बौद्ध भिक्खुओं का पूर्ण सहयोग करें तथा उनके काम में कोई बाधा न आने दे।
गुफाओं की खोज
यह माना जाता है कि दसवीं सदी में मद्ध भारत में बौद्ध धम्म के -हास के कारण बाघ की ये गुफाएँ दुर्लक्षित हो गई और जनमानस की स्मृतियों से लुप्त हो गई। आधुनिक युग में इन गुफाओं की खोज 1818 में डेन्जर फील्ड द्वारा की गई। यहाँ कुल 9 गुफाएं है जिनमें पहली, सातवीं, आठवीं और नौवीं गुफा नष्टप्राय अवस्था में हैं।
गुफाओं की रचना
इन गुफाओं में दुसरे क्रमांक की गुफा जिसे पाण्डव गुफा या गोसाईं गुफा कहते है, सर्वोत्तम स्थिति में है। इस गुफा के सामने जो बरामदा है उसकी छत छह स्तंभों पर आधारित है। सारे स्तंभ उत्कृष्ट नक्षीकाम से सुशोभित हैं। गुफा के मध्य में बडा दालान है जो भिक्खुओं के निवास के लिये विहार के रूप में उपयोग किया जाता था और पिछले हिस्से में चैत्य अर्थात प्रार्थना स्थान है।
तीसरी गुफा को स्थानिक लोग हाथीखाना के नाम से जानते हैं। यहाँ केवल विहार हैं और इसकी पथरीली दीवारें उत्कृष्ट नक्षीकाम से सुशोभित है।
चौथी गुफा जो आकार में सबसे बड़ी है उसे रंगमहल के नाम से जाना जाता है। इसके तीन द्वार और दो खिडक़ियाँ हैं। मुख्य प्रवेश द्वार अत्यंत आकर्षक है। इसकी छत अट्ठाईस स्तंभों के आधार पर टिकी हुई है। ये सारे स्तंभ निचे चौकोर, बाद में अष्टकोनिय, तत्पश्चात बहकोनिय तथा अंत में छत के पास अष्टकोनिय हैं।
पाँचवी गुफा जिसे पाठशाला कहते हैं, एक बडा सा दालान हैं। इसमें चैत्य, स्तूप, विहार या मूर्ति कुछ भी नहीं है और न हि इसे किसी तरह से सुशोभित किया है। इसे केवल धार्मिक प्रवचनों के लिये उपयोग किया जाता था।
छठीं गुफा की रचना दुसरी गुफा की तरह विहार और चैत्य का संमिश्रण है परंतु इसकी अवस्था जर्जर है।
गुफाओं के भित्तिचित्र
सभी विहारों एवं चैत्यों की छतों तथा दिवारों पर उत्कृष्ट भित्तिचित्र बनें हुए हैं जो अजंता गुफाओं के भित्तिचित्रों के समकालीन हैं। वाकाटक राजा हरिसेना ने कुछ राजनितिक अवरोधोंके कारण अजंता की गुफाओं में भित्ति चित्रोंका निर्माण रोक दिया था। तब उन कलाकारों ने काम की खोज में धार तक प्रवास किया और महाराज सुबंधु की अनुमति एवं सहायता से बाघ की इन गुफाओं का निर्माण किया। राजकीय अवरोध समाप्त होने के बाद ये कलाकार फिर से अजंता गये और वहाँ का काम पूर्ण किया।
बाघ की इन गुफाओं के भित्तिचित्र आध्यात्मिक कम और भौतिकतावादी अधिक है। इन्हें बनाने के लिए टेम्पेरा तकनीक का उपयोग किया गया है। टेम्पेरा तकनीक में पथरीली पृष्ठभूमि पर मिट्टी का लेप देकर उसके सूखने के बाद चित्र बनायें जाते हैं।
बाघ गुफाओं के भित्तिचित्र सौजन्य बिलालखत्री |
विगत कुछ 17-18 वर्षों से भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा बाघ की इन गुफाओं का जीर्णोद्धार किया जा रहा है जिससे इनकी स्थिति में सुधार हुआ है और यह मध्य प्रदेश का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन गया है।
------------------
खुप महत्वाची व नविन माहिती मिळाली
जवाब देंहटाएंइन गुफाओं से मैं एकदम अनभिज्ञ थी ।इतना सहज,सुंदर व विस्तृत वर्णन किया आपने कि अच्छी जानकारी मिली..बहुत बधाई व धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएं