खम्भालिदा की बौद्ध गुफाएं

                                      

खम्भालिदा गुफाएं 

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भारत में लगभग दस हजार स्थानों पर गुफाओं में भित्ति चित्र, मूर्तिकला एवं स्थापत्य कला के नमूने मिलें है। इनमें अजंता गुफाओं के भित्तिचित्र तो जगप्रसिद्ध है। अन्य गुफाओं में बंदिस्त कलाविष्कार की श्रृंखला में से हि एक है खम्भालिदा की बौद्ध गुफाएं जो उनकी मूर्तिकला एवं पत्थरों पर की गई बारीक नक्काशी के कारण गुजरात राज्य का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन गया है। 

स्थान और मार्ग 

गुजरात के राजकोट ज़िले में गोंडल के पास एक छोटे झरने के तट पर, छोटी छोटी पहाडियों की तलहटी में ये खम्भालिदा की बौद्ध गुफाएं स्थित है। इन गुफाओं की संख्या तीन है। राजकोट शहर भारत के सभी प्रमुख शहरों से सड़क, रेल तथा वायुमार्ग से भलीभाँति जोड़ा गया है। राजकोट से खम्भालिदा का अंतर 65 किमी तथा गोंडल रेल्वे स्टेशन से 27 किमी है। राष्ट्रीय राजमार्ग 27 का अवलंब करते हुए हम बस या प्रायव्हेट टैक्सी से केवल 40 मिनटों में गोंडल रेल्वे स्टेशन से खम्भालिदा गुफाओं तक सरलता से पहुँच सकते हैं। रहने के लिए राजकोट शहर तथा गोंडल में भी उत्तम होटल्स उपलब्ध है। 

निर्माण का कालखंड 

खम्भालिदा गुफाओं का निर्माण चौथी शताब्दी के अंत में तथा पाँचवी शताब्दी के शुरुआत में हुआ होगा ऐसा अनुमान है। खम्भालिदा गुफाओं की मूर्तियाँ कुषाण-क्षतपाक काल की मूर्तियों के साथ तुलनात्मक  समानता रखती हैं। जुनागढ की उपरकोट गुफाओं में प्राप्त महिलाओं की मूर्तियों के साथ भी समानता देखी जा सकती है। कुछ जगहों पर आंध्र प्रदेश के तरीके का प्रस्तुतिकरण भी देखा जा सकता है।

खोज और रचना 

प्रमुख भारतीय पुरातत्ववेत्ता श्री. पी. पी. पांड्या द्वारा 1958 में खम्भालिदा गुफाओं की खोज की गई। ये तीनों गुफाएँ चूना पत्थर की चट्टानों से बनी हुई है और संभवतः भिक्षुओं के आवास के लिए उपयोग में लाई जाती होंगी। तीन गुफाओं में मध्य में स्थित गुफा को चैत्य गुफा कहते है जिसमें एक स्तूप है जो जर्जर अवस्था में है। चैत्य गुफा के प्रवेश द्वार के दोनों ओर बोधिसत्व की दो मूर्तियां है। दायीं ओर अशोक वृक्ष के समान दिखने वाले वृक्ष के निचे परिचारिकों के साथ वज्रपाणि की मूर्ति है। बायीं ओर अशोक वृक्ष सादृश्य वृक्ष के निचे एक महिला और पांच परिचारिकाओं के साथ पद्मपाणि अवलोकितेश्वर की मूर्ति है।  पद्मपाणि  अवलोकितेश्वर के बायीं ओर एक बौने की मूर्ति है जो संभवतः एक यक्ष की मूर्ति है। बायीं ओर एक और गुफा है जो सामने की तरफ से खुली है और अंदर काफी गहरी और विशाल है। यह गुफा संभवतः भिक्षुओं द्वारा ध्यानधारणाके लिए उपयोग की जाती होंगी। 

आसपास के पर्यटन स्थल 

खम्भालिदा गुफाओं के आसपास और पंद्रह छोटी छोटी गुफाएं स्थित है जिसमें सुंदर नक्काशी और मूर्तियाँ पायी गयी। वे संभवतः बौद्ध भिक्षुओं द्वारा उकेरी गई होंगी। निकट ही एक विशाल आधुनिक बौद्ध मंदिर निर्माणाधीन है। गोंडल राजघराने का नदी किनारे स्थित महल जो यूरोपियन तरीके से बनाया गया है, भी देखने योग्य है। यहाँ के सर्व आधुनिक सुविधायुक्त ग्यारह शयनकक्ष पर्यटकों के लिये किराये पर उपलब्ध हैं। इस महल में वास्तव करनेवाले पर्यटकों को दरबारगढ के पुराने महल की सैर भी कराई जाती है। वैसे खम्भालिदा गाँव गीर राष्ट्रीय उद्यान से लगा हुआ होने के कारण गीर राष्ट्रीय उद्यान के पर्यटन का आनंद भी आप ले सकते हैं। गोंडल के तालाब और हरे-भरे चारागाह पक्षियों का अवलोकन करने वाले पक्षी प्रेमियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। 

खम्भालिदा गुफाओं का रखरखाव गुजरात राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा किया जाता है परंतु यहाँ स्वच्छता का अभाव है अतः कर्मचारियों की नियुक्ति की आवश्यकता है।

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