बाबासाहेब अंबेडकर, महिला उत्थान के प्रणेता


संपूर्ण विश्व डाॅ. बाबासाहेब अम्बेडकर जी को दलित समाज के उद्धारक के रूप में जानता है और यह शत प्रतिशत सही है। परंतु उनका कार्य केवल दलित समाज तक हि सीमित नहीं है। तत्कालीन भारतीय समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखते हुए भी वे व्यथित थे। पितृसत्तात्मक संस्कृति के दबाव में महिलाओं की इच्छा के खिलाफ विवाह, विवाह उपरांत उत्पीडन, बाल्यावस्था में गर्भधारण, आरोग्य विषयक समस्याएँ, विधवाओं का उत्पीड़न आदि सभी समस्याओं से वे भलीभाँति परिचित थे। वे जानते थे कि यह सारी समस्याएँ समाज के सभी वर्गों की महिलाओं को झेलनी पडती हैं। बाबासाहेब  के अनुसार  इस स्थिति को बदलने का एकमात्र तरीका था "शिक्षा"।

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर महिला मुक्ति के समर्थक थे। उनके अनुसार, यदि हम किसी भी समाज का मूल्यांकन करना चाहते हैं, तो वह उस समाज में महिलाओं की स्थिति के आधार पर किया जा सकता है। उन्होंने हमेशा कहा कि सभी समुदायों की लड़कियों को भी उतना ही शिक्षित होना चाहिए जितना कि उन समुदायों के लड़के शिक्षित होते हैं।  बाबासाहब का मानना था कि माता-पिता को बचपन से ही अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए चाहे वह लड़का हो या लड़की। अपने इन्हीं विचारों को प्रत्यक्ष रूप देने  के लिये बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने औरंगाबाद में मिलिंद कॉलेज की स्थापना की और लड़कियों को प्रवेश दिया।

जब बाबासाहेब श्रम मंत्री थे, तो उन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए कई फैसले लिए। महिला खनिकों के लिये समान वेतन, खनिकों के बहुविवाह पर बंदिश, महिला खनिकों को प्रसूती रजा, प्रसूती भत्ता आदि सुविधाओं का प्रावधान किया गया। वे कामकाजी महिलाओं को मैटरनिटी लीव देने की आवश्यकता को समझने वाले दुनिया के प्रथम व्यक्ति थे। 

1947 में जब बाबासाहेब कानून मंत्री थे, तब उन्होंने लोकसभा में हिंदू आचार संहिता अर्थात हिंदू कोड बिल का प्रस्ताव रखा था जिसमें विवाह संबंधों में स्त्री पुरूष समानता, महिलाओं को विवाह विच्छेद का अधिकार, पिता तथा पति के संपत्ति में अधिकार आदि का समावेश था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू जी ने बाबासाहेब को काम की जिम्मेदारी देते हुए उनकी अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसमें जी आर राजगोपाल, के के भंडारकर, आईएस वी गुप्ते एवं  के वाई भंडारकर शामिल थे। समिति ने कुछ साधारण से बदलावों के साथ बाबासाहेब ने बनायें हुये मसौदे को मंजूरी दी। परन्तु संविधान सभा में बिल पेश होने से पहले, हिंदू जनजागृति नेताओं ने "हिंदू धर्म खतरे में है" का जाप करना शुरू कर दिया। बाबासाहेबने 1947 से लगभग चार सालों तक अथक परिश्रम के बाद हिंदू कोड बिल तैयार करके 5 फरवरी 1951 को संविधान सभा में रखा। लेकिन कुछ हिंदू सदस्यों, लोकसभा सत्ताधारी और विपक्षी दलों के सनातनवादियों ने इसका कड़ा विरोध किया था। तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल, श्याम प्रसाद मुखर्जी और हिंदू महासभा सदस्य मदन मोहन मालवीय आदि इन विरोधकों में सामिल थे। 

हिंदू कोड बिल में जिन तत्वों से संबंधित कानूनों में बदलाव सुझाए थे, वे इस प्रकार हैं:

1. बिना वसीयत किये हुए मृत हिंदू व्यक्ति (पुरुष और महिला) के संपत्ति के अधिकारों के बारे में, 

२. विवाह

3. दत्तक ग्रहण विवरण

4. तलाक

5. निर्वाह निधी (तलाक के उपरांत)

6. अज्ञानता और संरक्षकता

7. मृतक का उत्तराधिकारी तय करने का अधिकार

इस विधेयक में निहित तलाक और द्वि पत्नी संबंधित धाराओं का कड़ा विरोध किया गया था। हिंदू धर्म में हस्तक्षेप के आरोप बाबासाहेब पर लगायें गये परंतु बिना डगमगाये उन्होंने अपनी बात रखी। लेकिन सत्र के अंत में केवल दो कानून हि अस्तित्व में आ सके।  सती प्रतिबंधक कानून एवं हिंदू विधवा पुनर्विवाह कानून। इस फैसले से दुखी और व्यथित होकर बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने 27 सितंबर, 1951 को कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। भारतवर्ष के इतिहास में यह एकमेव उदाहरण है जब किसी मान्यवर पदस्थ व्यक्ति ने महिलाओं के अधिकारों के लिये लड़ते हुए अपने पद का त्याग किया। त्यागपत्र देते समय उन्होंने कहा, "भारतीय समाज में प्रस्थापित स्त्री-पुरुष असमानता को कायम रखते हुए केवल आर्थिक विषयों से संबंधित कानून बनाते रहना संविधान का मजाक उड़ाना है। यह ठीक वैसा ही है जैसे गोबर के ढेर पर महल खड़ा करना।"

1955-56 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूजी ने हिंदू कोड बिल को चार अलग-अलग हिस्सों में विभाजित किया और इन चार कानूनों को अलग-अलग समय पर पारित किया।

1. हिंदू विरासत अधिनियम

2. हिंदू विवाह अधिनियम

3. हिंदू अज्ञानता और संरक्षकता अधिनियम

4. हिंदू दत्तक ग्रहण और निर्वाह निधी (तलाक के उपरांत) अधिनियम 

महाराष्ट्र के एक मान्यवर पत्रकार आचर्य अत्रे हिंदू कोड बिल के बारे में यह लिखते हैं कि यदि यह विधेयक पारित हो जाता, तो हिंदू समाज में असमानता समाप्त हो जाती और हिंदू समाज मजबूत हो जाता, लेकिन दुर्भाग्य से भारत और हिंदू समाज ने डाॅ. अंबेडकर द्वारा की गई इस पहल को नकार कर अपना हि नुकसान किया है।

वर्तमान भारत में महिलाओं की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में अत्यधिक सुधार है। वे विवाह संबंधों में और कार्यस्थल पर पुरूषों के समान अधिकार पाती हैं। वे समान वेतन, प्रसूती कालिन अवकाश आदि सुविधाओं का लाभ उठाती हैं। परन्तु कुछ महिलाएं बाबासाहेब अम्बेडकर जी का नाम सुनते ही नाक भौं सिकुड़ती हैं। उनके जन्मदिन तथा स्मृतिदिन पर भी उन्हें अभिवादन करने से कतराती हैं। उन सभी शिक्षित एवं प्रबुद्ध  महिलाओं से विनम्र निवेदन है कि वे अपनी विवेकबुद्धी को चालना देते हुए यह सोचें कि जिस व्यक्तिने समस्त भारतीय महिलाओं के उत्थान के लिए न केवल सोचा अपितु प्रयास भी किये उसके प्रति वे इतनी कृतघ्नता कैसे दिखा सकती हैं।

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