मंडला चित्रकला

                                   
तिबेटियन मंडला 

  
मंडला चित्रकला का इतिहास 

एशियाई आध्यात्मिक चित्रकला का अध्ययन करते समय हमें मंडला का परिचय मिलता है। मंडला चित्रकला का उल्लेख सर्वप्रथम बुद्ध धम्म संबंधित साहित्य में मिलता है। ज्ञानप्राप्ति के बाद महात्मा गौतम बुद्ध अपने तत्वज्ञान का प्रचार करने के लिए उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में घूम घूम कर  प्रवचन देते थे जिससे उनके कई शिष्य बन गये। शिष्यों की संख्या बढने पर उन्होंने भिक्षु संघ की स्थापना की और इन भिक्षुओं को अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न देशों में भेजा जैसे कि तिबेट, चीन, जापान आदि। ये भिक्षु अपने साथ मंडला चित्रों को भी ले गये जिन्हें वे ध्यानधारणा जैसी आध्यात्मिक प्रक्रियाओं में एक उपकरण के तौर पर उपयोग में लाते थे।

मंडला चित्र की रचना और अर्थ 

मंडला चित्र एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक उपकरण है। भारत में सभी धर्मों के लोग जैसे हिंदू, बौद्ध, जैन और शिनटोई; मंडला चित्रकला का उपयोग ध्यान धारणा के समय मन को एकाग्र करने के लिए करते हैं। मंडला चित्र को दो प्रकार से समझा जा सकता है। बाह्य रूप से वह ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है और आंतरिक रूप से एशियाई परंपराओं में प्रयोग होने वाली ध्यानधारणा जैसी  क्रियाओं के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में।

मंडला का अर्थ गोलाकार है और यह पूर्णत्व का दर्शक है। अपने सबसे बुनियादी रूप में, मंडल एक वर्ग के भीतर समाहित वृत्त होते हैं। यह वृत्त कई खंडों में विभाजित होता है और इन खंडों को एक ही केंद्रीय बिंदु के आसपास व्यवस्थित किया जाता हैं। इन खंडों में कुछ धार्मिक प्रतीकों का कलात्मक रूप से चित्रांकन किया जाता है। 

मंडला चित्रों में प्रतीकों का उपयोग 

मंडला चित्र के जटिल वृत्त के भीतर, आप कुछ सामान्य प्रतीकों को देख सकते हैं।  परंपरागत रूप से, वे बुद्ध के मन का एक सार रूप में प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे आमतौर पर एक पहिया, पेड़, फूल के रूप में दर्शाया जाता है।  केंद्र में एक बिंदु है जो सभी आयामों से मुक्ती का प्रतीक है।  यह केंद्र बिंदु रेखाओं और ज्यामितीय पैटर्न से घिरा हुआ है जो ब्रह्मांड का प्रतीक है।यह सारी रचना एक बाहरी वृत्त से घिरी हुई है जो जीवन की चक्रीय प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है। मंडला चित्र में प्रयोग किये जाने वाले कुछ सामान्य प्रतीक इसप्रकार है।

  • चक्र: यह वृत्ताकार चक्र ब्रम्हाण्ड की कलात्मक प्रतिकृति होती हैं। इस चक्र में आठ आरियाँ होती हैं जो बुद्ध द्वारा बताये गये अष्टांगिक मार्ग को दर्शाता है।
  • घंटा:  मंडला में घंटा खुलेपन को दर्शाता है। घंटे की ध्वनि से मन एवं मस्तिष्क के द्वार खुले करके उन्हें रिक्त करना है ताकि स्पष्टता और ज्ञान का मार्ग प्रशस्त हो सकें।
  • त्रिभुज : सीधा खड़ा हुआ त्रिभुज क्रियाशीलता और उर्जा को दर्शाता है तथा उल्टा त्रिभुज रचनात्मकता और ज्ञान की खोज को दर्शाता है।
  • कमल का फूल: बुद्ध तत्वज्ञान में कमल का फूल एक पवित्र प्रतीक माना गया है। कमल के आकार की समरूपता संतुलन का प्रतीक है। जिस प्रकार कमल का फूल पानी के निचे से निकल कर ऊपर प्रकाश की ओर बढ़ता है उसी प्रकार मनुष्य को आध्यात्मिक जागरूकता के साथ ज्ञान के प्रकाश की ओर बढ़ना चाहिए।
  • सूर्य: आधुनिक मंडला चित्रकला में सूर्य एक लोकप्रिय प्रतीक है जो ब्रम्हाण्ड का प्रतिनिधित्व करता है साथ ही जीवन में उर्जा की आवश्यकता को दर्शाता है।

मंडला चित्र के प्रकार 

  • शिक्षण मंडला चित्र: यह प्रतीकात्मक है।  शिक्षण मंडला चित्र का प्रत्येक आकार, रेखा और रंग एक दार्शनिक या धार्मिक प्रणाली के एक अलग पहलू का प्रतिनिधित्व करते हैं।  रचनाकार मंडला चित्र निर्माण के सिद्धांतों के आधार पर अपना खुद का मंडला चित्र बनाता है, जो उन्होंने सीखी हर चीज का एक दृश्य प्रतीक पेश करता है। शिक्षण मंडला चित्र अपने रचनाकार के लिए एक मानसिक  मानचित्र के रूप में कार्य करता है।
  • उपचार मंडला चित्र: शिक्षण मंडला चित्र की तुलना में उपचार मंडला चित्र अधिक सहज है।  कलाकार द्वारा उसके अंतर्ज्ञान से सहजता पूर्वक बनायें हुये होते है। वे शांति एवं एकाग्रता की भावना को उत्पन्न करते हैं और मानसोपचार की प्रक्रिया में काम आते है। 
  • रेत से बने हुए मंडला चित्र: बौद्ध धर्म में मंडला चित्रकला का विकास रेत यानि बालू से बनाई गई चित्रकला के रूप में भी हुआ था। मंडला चित्रकला में प्रयुक्त विभिन्न प्रतीकों का उपयोग करते हुए बहुत सुन्दर कलात्मक मंडला चित्र रेत यानि बालू से जमीन पर बनाया जाता है। इसे बनाते समय कई रंगों की रेत और धातु की एक नली का उपयोग किया जाता है। रेत के मंडला चित्र बौद्ध भिक्षुओं द्वारा किया जाने वाला एक पारंपरिक धार्मिक विधि हैं। इस चित्र को बनाने में कई सप्ताह लगते हैं और इनके पूर्ण होने के कुछ ही समय बाद इन्हें नष्ट कर दिया जाता है। बुद्ध तत्वज्ञान में यह माना जाता है कि जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है। जीवन की इसी नश्वरता को दर्शाने के लिए रेत से बने मंडला चित्र इन्हें बनाने के तुरंत बाद नष्ट किये जाते हैं।
                                            
21 मई 2008 को माननीय दलाई लामा के स्वागत में हाऊस ऑफ काॅमन्स में बनाया हुआ Chenrezig sand mandala 
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मंडला चित्रकला के लाभ 

  • मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन एवं उपचार: आधुनिक युग में कार्ल जुंग नामक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ने मंडला चित्रकला को मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन एवं उपचार के लिए उपयोग करने के लिये सुझाव दिया। उनके अनुसार मंडला का निर्माण करते समय रुग्ण भलीभाँति ध्यान केंद्रित कर पाते थे और शांति महसूस करते थे।मंडला चित्र का निर्माण मन की एकाग्रता और मानसिक शांति पाने में मदद करता है अतः स्ट्रेस और अकारण चिंता के उपचार में लाभदायक है।
  • मोटार कौशल्य को बढ़ावा: मंडला चित्र का निर्माण करते समय मन की एकाग्रता के साथ हाथों को स्थिर रखने की भी आवश्यकता होती है जिससे चित्रकार के मोटार कौशल्य को मजबूत करने में सहायता मिलती है।
  • आत्मविश्वास में वृद्धि: मंडला चित्र बनाने के लिए व्यक्ति को एक अनुभवी चित्रकार होने की आवश्यकता नहीं है। व्यक्ति अपनी अंतप्रेरणा से स्वतंत्रतापूर्वक रंगों एवं प्रतीकों का चयन कर सकते हैं। एक तरह से मंडला चित्र चित्रकार की आत्मअभिव्यक्ति होती है और स्वयं द्वारा निर्मित मंडला चित्र उसे आत्मविश्वास की अनुभूति कराता है और प्रेरणा देता है। 

सबसे बड़ा मंडला चित्र: मणिपुर की राजधानी इंफाल में स्थित भकलंग जियो ग्लिफ या बिहु लुकोन को दुनिया का सबसे बड़ा मंडला माना जाता है। इसे Google Earth का उपयोग करके इसे 2013 में खोज निकाला गया था। यह एक चौकोर मंडला है और पूरी तरह से मिट्टी से बना है। मणिपुर सरकार द्वारा इसे ऐतिहासिक स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।

मंडला चित्रकला लगभग 2500 वर्षों से आध्यात्मिक और धार्मिक उद्देश्यों के लिए बनाई जा रही है। यह तत्थ्य उसे सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है साथ हि अन्य कलाओं की तुलना में वैशिष्ट्यपूर्ण भी।
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