प्रार्थना के हाथ

 

कागज़ पर लकीरें खींचने की आदत मुझे बचपन से ही थी। स्कूल और काॅलेज में पढ़ते समय सभी काॅॅॅपियों केे पिछेसे आधे पन्ने तरह तरह के फूलों और चेहरोंं से भरेे रहते थे। उम्र के करीब पैैैैंतालिस वर्ष पूूर्ण होने के बाद अपनी इस आदत की ओर थोड़ा ध्यान देने की इच्छा हुई। उसी समय पति का तबादला मुंबई हुआ। मुंबई में रहते हुए अपनी इस इच्छा को पूर्ण करने का अवसर भी मुझे मिला।

मै और मेरी एक समविचारी सहेली अजिता खडके, हम दोनों ने कलानिकेतन संस्था द्वारा संचालित चित्रकला क्लास में दाखिला लिया जहाँ हमने  वारली चित्रकला की बारीकियां सिखी। बाद में नागपुर आने पर श्रीमती सुगुणा राव जैसी प्रतिभाशाली कलाकार का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। राव मॅडम ने रंग, ब्रश और कैनवास के साथ कई प्रयोग सिखाये। साथ ही उन्होंने इस बात के लिए भी प्रोत्साहित किया कि मैं नामवंत चित्रकारों के बारे में जानकारी प्राप्त करूँ और उनके चित्रों का अभ्यास करूँ। इसी अभ्यास के दौरान एक चित्र और उससे संबंधित कहानी जो मन को भा गयी वह चित्र है 'प्रार्थना के हाथ'।

'प्रार्थना के हाथ' इस चित्र को 'Study of the hands of an Apostle' के नाम से भी जाना जाता है। यह एक 29 cm × 19 cm आकार के कागज़ पर इंकपेन से बना रेखाचित्र हैं जिसे जर्मन चित्रकार अल्ब्रेक्ट डोरर ने 1508 में बनाया था जब जर्मनी पुनरुत्थान के दौर से गुजर रहा था। यह चित्र निले रंग के कागज़ पर बना है जिसे अल्ब्रेक्ट ने स्वयं तैयार किया था। आज यह चित्र ऑस्ट्रिया के विएना में अल्बर्टिना संग्रहालय में है।

जर्मनी के न्युर्नबर्ग शहर के पास एक छोटे से देहात में रहनेवाले एक गरीब सुनार की अठारह संतानों में सबसे बड़े दो भाई थे अल्ब्रेक्ट और अल्बर्ट। दोनों को ही चित्रकला में बहुत रुचि थी और दोनों न्युर्नबर्ग जाकर अकादमी में चित्रकला का प्रशिक्षण पाना चाहते थे। अपने पिता की आर्थिक स्थिति देखते हुए वे जानते थे कि यह संभव नही है। काफी विचार-विमर्श के बाद उन्होंने यह तय किया कि वे सिक्का उछाल कर इस समस्या का हल निकालेंगे। जो जितेगा वह अकादमी में चित्रकला का प्रशिक्षण लेने जायेगा और दुसरा पास की खानों में काम करके पैसे कमाकर अकादमी का खर्च उठायेगा। 

एक रविवार को चर्च के बाद उन्होंने सिक्का उछाला। अल्ब्रेक्ट जितकर न्युर्नबर्ग चित्रकला का प्रशिक्षण लेने चला गया और अल्बर्ट पास की खानों में मजदूरी करने। अकादमी में अल्ब्रेक्ट के काम की बहुत सराहना हुई। उसके प्राध्यापकों से भी ज्यादा उसके काम को किमत मिलती थी। चार वर्षों के बाद जब अल्ब्रेक्ट घर वापस आया तब उसके सम्मान में एक पारिवारिक रात्रिभोज आयोजित किया गया। रात्रिभोज के अंत मे अल्ब्रेक्ट ने अल्बर्ट के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि अब अल्बर्ट अकादमी में चित्रकला का प्रशिक्षण लेने जायेगा और वह उसका सारा खर्च उठायेगा। 

यह सुनकर  अल्बर्ट की आँखों से आँसू बहने लगे। अपने दोनों हाथ सामने करते हुए उसने बताया कि यह संभव नही। चार साल खान में काम करने के कारण उसकी उँगलियाँ बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई थी।और वह अब ब्रश भी नही उठा सकता। ऐसा माना जाता है कि अपने भाई के इन्हीं हाथों का रेखाचित्र अल्ब्रेक्ट ने बनाया। अल्ब्रेक्ट ने इस चित्र को नाम दिया था 'हाथ'। बाद में लोगों ने इसे 'प्रार्थना के हाथ' यह नाम दिया क्यों कि इन हाथों की उँगलियाँ आकाश की ओर है जैसे ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हो। 

अल्ब्रेक्ट ने अपने जीवन काल में कई चित्र बनायें। उसने स्वयं के तथा अपने पिता के विभिन्न आयु को दर्शाते हुए portraits बनायें। अल्ब्रेक्ट द्वारा बनायें गए तैलचित्रों में प्रमुख हैं - 'एडम एण्ड ईव्ह', 'क्राइस्ट अमाॅन्ग द डाॅक्टरस्', 'द सुसाईड ऑफ ल्युक्रेशिया', 'फिस्ट ऑफ रोजरी' इत्यादि।उसने लकडी काट कर भी कलाकृतियाँ बनाईं (wood carving). अल्ब्रेक्ट डोरर पुनरुत्थान कालिन जर्मनी का एक ख्यातिप्राप्त कलाकार था। उसकी बनाईं कलाकृतियाँ जर्मनी के विभिन्न संग्रहालयों में प्रदर्शित की गई हैं। इन सभी कलाकृतियों में लोकप्रियता की दृष्टी से अग्रस्थान पर है यह रेखाचित्र 'प्रार्थना के हाथ' और इसका कारण शायद इसके साथ जुडी हुई यह भावनात्मक एवं प्रेरणादायक कहानी है जो नेपोलियन हील द्वारा कही हुई निम्न उक्ति को सार्थक करती है।

'Great achievement is usually born of great sacrifice and is never the result of selfishness.'

अर्थात उच्च स्तर की उपलब्धि के पिछे उतना ही उच्च स्तर का त्याग होता है। स्वार्थ के पेड़ पर उपलब्धियों के फल नहीं आते।
    
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टिप्पणियाँ

  1. आपका लेख मन को छू गया । सच अगर कोई कुछ प्राप्त करता है तो उसके पीछे किसी का त्याग ज़रूर होता है । बहुत सुंदर 👌

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