महाराष्ट्र की खाद्यसंस्कृति भाग 1
चालीस साल पहले जब शादी के बाद मै महाराष्ट्र से उत्तरप्रदेश रहने गई तब एक सवाल कोई न कोई पडोसन पूछ हि लेती थी, "आज क्या बना रही हो? रोटी या चावल? यह सवाल मुझे बड़ा अजीब लगता क्यों कि महाराष्ट्र में सर्वसाधारण घरों में रोटी और चावल दोनों समान रूप से बनते हैं। एक आम महाराष्ट्रीय थाली में दाल, चावल, रोटी, सब्जी, दही, चटनी और सलाद होता है। शुरू में थोड़ासा दाल चावल घी डाल कर खाया जाता है ताकि गले और अंतडियों की greasing हो।
महाराष्ट्र के खाद्य पदार्थों की बात चलते हि याद आते हैं बटाटावडा, वडापाव, भेल जैसे पदार्थ। आजकल पुरणपोळी, थालीपीठ, साबूदाना वडा जैसे पदार्थों को भी अन्य प्रांतों के लोग जानने लगे हैं। हालांकि इन व्यंजनों को बनाने का और खाने-परोसने का तरीका महाराष्ट्र के विभिन्न विभागों में अलग-अलग हैं। मराठवाड़ा और खानदेश में मिसळ के साथ खाई जानेवाली तर्री विदर्भ में पोहा के साथ भी परोसी जाती है। कोकण, पश्चिम महाराष्ट्र में ज्यादातर उकडिचे (steamed) मोदक बनते हैं और उपरी आवरण चावल के आटे का होता है। विदर्भ में ज्यादातर तले हुए मोदक बनते हैं और उपरी आवरण मैदा/सूजी का बनता है। महाराष्ट्र की खाद्य संस्कृति में इसप्रकार जगहों के साथ साथ बदलाव देखने को मिलते हैं।
कोंकण विभाग की खाद्य संस्कृति
कोंकण विभाग में पालघर, रत्नागिरी, ठाणे, रायगढ़ और सिंधुदुर्ग ये समुद्र के किनारे स्थित जिले समाविष्ट हैं। समुद्र किनारे नारियल के पेड़ बहुतायत में होने के कारण व्यंजनों मे नारियल का प्रयोग अधिक मात्रा में होता हैं। चावल का उत्पादन बहुत होने के कारण चावल के व्यंजन भी बहुत बनायें जाते हैं।
घावणे: चावल के आटे का घोल बनाकर उसके दोसे बनाते हैं। भीतर नारियल और गुड का भरावन होता है।
आंबोळी: चावल का आटा और उडद की दाल से बनाया हुआ थोड़ा मोटा, लगभग 1सेमी मोटा जालीदार डोसा जो काले चने के रस्से के साथ या सागुती के साथ खाया जाता है।
तवसोळी: चावल का आटा, खीरा और गुड से बनाया हुआ स्वादिष्ट केक।
शिरवाळी: ये चावल की सेवईं होती हैं जो एक विशिष्ट साँचे की मदद से बनाईं जातीं हैं। इन्हें नारियल का दूध और गुड से बनायें गये रस के साथ खाया जाता है।
सोलकढी: नारियल का दूध और आमसुल (कमरख के फल को काटकर सुखाये हुए टुकड़े) का उपयोग करके बनाईं हुई कढ़ी। जितनी स्वादिष्ट उतनी ही सुन्दर, गुलाबी रंग की।
सागुती वड़ा: चावल, चना दाल और उडद दाल से वड़ा बनाते है जो चाय के साथ भी खाया जा सकता है मगर चिकन या मटण के साथ का मजा कुछ और हि है। सागुती यानि मसाले दार चिकन या मटण।
कोंकण के अन्य लोकप्रिय व्यंजन हैं, कटहल के काप, गिले काजूगर की उसळ, उकडिचे मोदक, मासवडी, पातोडी, हल्दी के पत्तों में भाप पर पकाई हुई मछली इत्यादि।
नाॅनव्हेज में सभी प्रकार के sea food बहुत लोकप्रिय है। कोलंबी पोहा भी खूब बनता है। कोलंबी यानि छोटी छोटी झिंगा मछली। जैसे आलू पोहा, मटार पोहा वैसे कोलंबी पोहा। है ना मजेदार।
मुंबई की खाद्य संस्कृति
राजकिय दृष्टि से मुंबई का समावेश कोंकण विभाग में हि होता है परंतु खानपान की दृष्टि से एकदम भिन्न है। मुंबई एक cosmopolitan city है अतः यहाँ के खाद्य पदार्थ भी बहुसांस्कृतिक है। जैसे मुंबई में जगह-जगह मिलने वाली पावभाजी गुजरात से आई है।
कई लोग मुंबई में रोजी-रोटी के लिए अपने परिवार से दूर आकर बसे हुए हैं। ऐसे लोगों के लिए राहत का सामान है मुंबई का वड़ा पाव। पाव को बीच से काटकर, अंदर चटनी लगाकर, उसमें एक बटाटावडा रखकर बनाया हुआ यह पदार्थ आप हाथ में लेकर खड़े खड़े खा सकते हैं। सस्ता, स्वादिष्ट और सुविधाजनक।
मुंबई में sea food भी बहुत मिलता हैं, रावस, कोलंबी, चिंबोरी ...... और लोकप्रिय है पाम्पलेट।
मुंबई के चौपाटी की भेल, सेवपुरी, पानी पुरी को भी आप नही भूल सकते। हालांकि ये सारे पदार्थ भारत के हर कोने में मिलते हैं पर इनकी पहचान तो मुंबई से हि है।
महाराष्ट्र के अन्य विभागों की खाद्य संस्कृति के बारे में जानकारी लेने का प्रयास करेंगे 'महाराष्ट्र की खाद्य संस्कृति भाग 2' में।
पदार्थ बनविण्याची एकच पध्दत पंण प्रांत व विभागान्व्ये नावामध्ये कसे बदल होतात ही महत्वपूर्ण माहिती मिळाली
जवाब देंहटाएंमहाराष्ट्रीयन खाने का स्वाद हमे हमेशा से ही लुभाता रहा है । हम उत्तर भारतीय भी अब कुछ कोशिश करते हैं इन्हे घर पर बनाने की,पर वैसा स्वाद कहाँ ? बहुत विविधता है व्यंजनों की..अच्छी जानकारी मिली ।
जवाब देंहटाएंGood article. Nice read
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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