पारंपरिक भारतीय चित्रकला - भाग 1.

भारत की सांस्कृतिक और प्रादेशिक विविधताओं के साथ साथ भारतीय चित्रकला में भी विविधता पाई जाती हैं जो कि प्रत्येक प्रदेश की अपनी विशिष्ट पहचान बन गई है। आइए जानते हैं विभिन्न प्रदेशों के अनुसार  भारतीय चित्रकला के कुछ प्रमुख पारंपरिक प्रकार।

मधुबनी : बिहार के मधुबनी, दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा, मुजफ्फरपुर एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। माना जाता है कि ये चित्र राजा जनक ने राम-सीता के विवाह के दौरान महिलाओं से बनवाये थे।इसमें देवी-देवताओं के चित्र, प्राकृतिक दृश्य, पेड़ पौधें और विवाह के दृश्य आदि का चित्रण होता है। मधुबनी चित्रकला दो तरह की होती है - भित्तिचित्र और अरिपन या अल्पना। चित्रकला में प्रयुक्त रंग घरेलू वस्तुओं से बनायें जाते हैं। जैसे हल्दी, केले के पत्ते, लाल रंग के लिए पिपल की छाल आदि। मधुबनी चित्रकला को घर की खास तीन जगहों पर बनाने की परंपरा है जैसे पूजा स्थान, कोहबर कक्ष (विवाहितों का कमरा) और शादी या कोई खास उत्सव पर घर की दिवारों पर। वर्तमान समय में मधुबनी चित्र दिवार, कैनवास, कपड़े, हस्तनिर्मित कागज इत्यादि पर बनायें जाते हैं।

रजनी झा द्वारा बनाया मधुबनी चित्र

पट्टचित्र : पट्टचित्र कला ओडिशा और पश्चिम बंगाल की नयनरम्य पारंपरिक चित्रकला है जो कपड़े पर की जाती है। पट्ट का अर्थ कपड़ा है। इसमें पौराणिक कथाओं एवं लोककथाओं का चित्रण होता है। एक जालीदार सूती कपड़े को सफेद पत्थर के पावडर और इमली के बीजों से बने गोंद या कायथ के पेड़ से मिले गोंद से लेपित करके कैनवास बनाते है। यह कैनवास प्राकृतिक रंगों को स्वीकार करने के लिए सक्षम होता है। पट्टचित्र बनाने के लिए प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता है। सफेद रंग के लिए शंख के पावडर का प्रयोग करते है।

पट्टचित्र
निता परिहार द्वारा बनाया  

कलमकारी : कलमकारी चित्रकला मुख्यतः भारत के आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य की लोक कला है। सूती कपड़े पर प्राकृतिक रंगों से चित्र बनायें जाते हैं। कलमकारी के दो प्रकार हैं। श्रीकलाहस्ती और मछलीपट्टनम।श्रीकलाहस्ती प्रकार में कलम यानि पेन का इस्तेमाल करके चित्र बनाकर रंग भरे जाते हैं। यह पूर्णतः हस्तकला है। मछलीपट्टनम प्रकार में ब्लाॅक भी इस्तेमाल होते हैं।

कलमकारी चित्र
जयश्री प्रभाकर द्वारा बनाया 

तंजावुर चित्रकला : यह दक्षिण भारत की पारंपरिक चित्रकला है जिसका मूल तंजावुर शहर में है। तंजावुर चित्रकला के विषय हिंदू धर्म से जुड़े होते है जैसे बालाजी, महालक्ष्मी, श्री गणेश आदि। तंजावुर चित्रोंकी विशेषता यह है कि इसमें सोने का वर्ख यानि गोल्डन फाॅईल का इस्तेमाल होता है।लकडी और कपड़े से बने कैनवास पर चित्र बनायें जाते हैं। उभरा हुआ 3डी प्रभाव दिखाने के लिए चित्रकार चूना पावडर का उपयोग करते हैं। कीमती पत्थर और काँच के टुकड़ों से चित्र को सुशोभित किया जाता है।

तंजावुर चित्रकला
Soumya730 / CC BY-SA

केरल के भित्ति चित्र  : दक्षिण भारत में मुख्यतः केरल राज्य में मंदिरों तथा राजमहलों की दिवारों पर भित्तिचित्र बनायें हुये हैं जो हिंदू पौराणिक कथाओं एवं किंवदंतीयों को दर्शाते है। तृशूर का वडकुन्नाथ मंदिर, तिरुवनंतपुरम का पद्मनाभस्वामी मंदिर, तिरुवनंतपुरम और पद्मनाभपुरम के राजमहल इत्यादि मुख्य स्थान हैं जहाँ भित्ति चित्र बनें हुए हैं। केरल के कुछ गिरजाघरों में भी भित्ति चित्र बनें हुए हैं जो बाईबल की कहानीयों को दर्शाते हैं।

केरल के भित्ति चित्र

वारली चित्रकला : वारली चित्रकला एक आदिवासी चित्रकला है। महाराष्ट्र के मुंबई जिले के उत्तर सीमा क्षेत्र में वारली जनजाती के लोगों द्वारा मूल रूप से कि जाती है। इसमें वारली समाज का जनजीवन चित्रित किया जाता है। त्रिकोण, चौकोर, गोलाकार, बिंदु, लकीरें आदि भूमितिय आकारों का प्रयोग करके पशु पक्षी, वृक्ष, नदी, पहाड़, उनके घर, खेती की विभिन्न प्रक्रिया एँव खेती के औजार, तारपाँ नृत्य, मेला इत्यादि के चित्र बनायें जाते हैं। दिवारों को मिट्टी और गोबर से लीप कर गेरू से रंग दिया जाता है और सफेद रंग से चित्र बनायें जाते हैं। आजकल कागज, कपड़े तथा कैनवास पर कृत्रिम रंगों से रंग बिरंगे चित्र बनायें जाते हैं।

वारली चित्रकला 

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टिप्पणियाँ

  1. अपने देश की इतनी लोककलाओं के विषय में जानकर बहुत गर्व की अनुभूति हुई । कितनी सुंदर सच,बस इन्हें जीवित रखने की ज़रूरत है ।आपने बहुत सुंदर तरीके से सहज रूप में लिखा..बधाई🍁

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