वारली चित्रकला.
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पारंपरिक वारली चित्र |
क्या है आदिवासी चित्रकला?
भारत के समृद्ध सांस्कृतिक जीवन को आदिवासी कला का बड़ा आधार प्राप्त है। आदिवासी समाज में उपलब्ध वस्तुओं का प्रयोग करके अपनी परंपराओं एवं परंपरागत चले आ रहे प्रकृति के प्रति प्रेम का उत्स्फूर्त आविष्कार ऐसी हम आदिवासी कला की सरल परिभाषा कर सकते है।
क्या है वारली चित्रकला?
महाराष्ट्र राज्य को भी आदिवासी कलाओं की समृद्ध विरासत प्राप्त है जिसमें मिट्टी की मूर्तियाँ, पाषाण मूर्तियाँ, लकडी पर की गई नक्काशी, वाद्य, शिकार के साधन, मुखौटे आदि कलात्मक वस्तुओं के साथ साथ वारली चित्रकला का भी समावेश है। जरा भी अक्षर ज्ञान न होने वाले वारली समाज के लिए उनकी चित्रकला संवाद का एक साधन थी।
कैसे की जाती है वारली चित्रकला?
वारली एक जनजाती है जो महाराष्ट्र के मुंबई जिले के उत्तर सीमा क्षेत्र में पाई जाती है। वारली समाज कृषि प्रधान एवं मेहनती है। उनकी छोटी छोटी बस्तीयों में, जिन्हें वे 'पाडा' कहते हैं, झोंपड़ी नुमा घर होते हैं जो लकडी, बाँस और मिट्टी से बने होते हैं। दिवारों को मिट्टी और गोबर से लीप कर गेरू से रंग दिया जाता है और सफेद रंग से चित्र बनायें जाते हैं। चावल के आटे का घोल बनाकर सफेद रंग बनाया जाता है। ठोस बाँस की खपच्चियों एवं खजूर के काँटे का प्रयोग ब्रश के तौर पर किया जाता है। वारली चित्रकला मुख्यतः समाज की स्त्रियों द्वारा विशेष अवसरोंपर घर को सजाने के लिए की जाती थी।
वारली चित्रकला के विषय
वारली चित्रकला वारली समाज की संस्कृति, परंपरा एवं क्षेत्रीय प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर ही परिपोषित हुई है। इसलिए वारली चित्रकला में धार्मिक विधि, लग्न विधि, दैनंदिन जीवन एवं लोकजीवन का चित्रण है। आसपास पाये जाने वाले पशु पक्षी, वृक्ष, लताएँ, नदियाँ, नाले, पहाड़ इन नैसर्गिक बातों के साथ साथ उनके घर द्वार, खेती, खेती के साधन, खेती की विभिन्न प्रक्रियाएँ, शिकार, शिकार के साधन, मेला, नृत्य जिसे तारपाँ कहते हैं आदि विषयों पर भित्ति चित्र बनायें जाते हैं। त्रिकोण, चौकोर, गोल, बिंदु, लकीरें आदि भूमितिय आकारों का प्रयोग करके उत्कृष्ट स्तर की कलाकृतियों का निर्माण किया जाता हैं।
प्रमुख वारली कलाकार- श्री. जीवा मशे।
वारली चित्रकला के उत्कृष्ट कलाकारोंमें प्रमुख नाम है श्री. जीवा सोमा मशे। उनका जन्म 1934में महाराष्ट्र के ठाणे जिले के तलसारी तालुका के धामणगाव में हुआ। सात साल की उम्र में उनकी माँ का देहांत हो गया। जीवा को इतना सदमा लगा कि उन्होंने बोलना बंद कर दिया। वे केवल मिट्टी पर चित्र बना कर अपनी बात कहते थे। बाद में वे ठाणे जिले के डहाणू तालुका के कलंबीपाडा में रहने आये।वहाँ भी चित्र बनाना ज़ारी था।उनकी चित्रकला की बात उस समय के जाने माने कलाकार श्री. भास्कर कुलकर्णी के कानों तक पहुंची। जीवा की चित्रकला देख कर वे अचंभित रह गए। उन्होंने जीवा मशे के हुनर को तराशा। दिवारों की जगह कागज और कैनवास ने ली। जीवा का काम आसान हो गया। इस समय तक वारली एक अनुष्ठानिक कला थी जो विशेष अनुष्ठानों के समय की जाती थी। जीवा मशेजी रोज चित्र बनाने लगे। श्री. भास्कर कुलकर्णी ने श्री. जीवा मशेजी के चित्रोंकी प्रदर्शनी मुंबई के जहांगीर आर्ट गॅलरी के गॅलरी चेमाॅल्ड में आयोजित की। इस तरह वारली समाज के पाड़ों में बन्दीस्त यह उमदा कला सत्तर के दशक में दुनिया के सामने आई।
श्री. जीवा मशे की उपलब्धियां
श्री. जीवा मशे के कई उत्कृष्ट चित्रों में "लग्नाचा चौक", "तारपाँ " और "पालगुट देवी" ये चित्र अधिक प्रसिद्ध हुए। उन्हें पं. जवाहर लाल नेहरू तथा बाद में श्रीमती इंदिरा गांधी के हाथों सम्मानित किया गया। श्री. जीवा मशे को अनेक पुरस्कार मिले जैसे 1976 में ट्रायबल आर्ट के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, 2002 में शिल्प गुरू, 2009 में प्रिंस क्लाॅज अवार्ड। 2011 में वारली चित्रकला में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 15 मई 2018 को पालघर में उनका देहांत हुआ। उनके पीछे दो बेटे सदाशिव और बालू तथा एक बेटी है। उनके दोनों बेटे वारली कला विधा के अच्छे जानकार हैं।
वारली चित्रकला की वर्तमान स्थिति
श्री. जीवा मशे को मिली इस अभूतपूर्व पहचान को देखकर कई युवा कलाकार प्रेरित हुए और उन्होंने व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए नियमित रूप से वारली चित्र बनाना शुरू किया। आजकल वारली चित्रकला का रूप बदल रहा है। वैसे समय के साथ चित्रकला के साधनों में बदलाव स्वाभाविक है परंतु वारली के जो मूल चित्र हैं उनमें बदलाव नहीं होना चाहिये। क्यों कि वारली के मूल चित्र वारली समाज की सामाजिक परिस्थितियों एवं संस्कृति को दर्शाते है जो कि एक समाजशास्त्रिय अध्ययन का विषय है। अगर हम उन मूल चित्रोंको हि बदल देंगे तो हम वारली समाज की सही जानकारी अगली पीढियों तक नही पहुँचा पायेंगे।
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आधुनिक वारली चित्र |
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सुंदर वारली कला ,इसे जीवित रखने का प्रयास ज़रूरी है ।लेख से अच्छी जानकारी मिली ।
जवाब देंहटाएंIt is amazing how you have researched the History of Warli Art .When we read your blog content,we tend to understand the real meaning of these paintings.It is good to update any art form to the present social conditions,but we need to give due credit to the rich heritage of those days .
जवाब देंहटाएंNice. Elaborately explained about warli painting.
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