महाराष्ट्र की लोककलाएँ

महाराष्ट्र भारत का एक प्रगतिशील प्रान्त है और शैक्षणिक तथा औद्योगिक क्षेत्रों में अग्रणी है। साथ ही महाराष्ट्र को लोककलाओं की गौरवशाली विरासत भी प्राप्त है। 

बचपन में वासुदेव आता था गाना गाते हुए। जहाँ से जो मिलेगा लेकर ढेरों आशिष दे जाता था। अस्सी के दशक में बेटे की प्रथम वर्षगांठ के समय वासुदेव को आखिरी बार देखा। बेटे को आशीर्वाद और दादा, बुआ, चाचा सबको बधाइयाँ देनेवाले कई गीत गाये थे उसने। गणेशोत्सव के दिनों में कुछ कलाकार शेर का रूप लेकर आते थे। पूरे शरीर पर शेर की तरह काले पीले पट्टे, सर पर बालों की टोपी और कमर पर शानदार पूँछ। ढोल नगाड़े के साथ, आक्रमक शेर की सारी भावभंगिमाएँ दिखाते हुए बड़ा हि आकर्षक नृत्य होता था। धीरे धीरे इस मानवी शेर का आना कब बंद हुआ पता ही नहीं चला। 

कुछ लोककलाएँ समय के साथ लुप्त हो गई लेकिन कुछ आज भी अपना अस्तित्व टिकाकर रखने में सफल है।

पोवाडा

पोवाडा एक मराठी कविता प्रकार है। चौराहों पर या खुले मैदान में, बड़े जनसमूह के सामने, उच्च स्वरमें, जोश के साथ इसे गाया जाता है। प्रत्येक चरण के अंत में साथियों द्वारा गाया जानेवाला 'जी जी र जी' का स्वर भी श्रोताओं को बांधे रखता है। पोवाडा के अंतर्गत मुख्यतः तीन प्रकार की कविताएं होती हैं। 

  1. देवताओं एवं तिर्थक्षेत्रों का महत्व बताने वाली कविताएँ. इनके गायक गोंधळी समुदाय के लोग और श्रोता भाविक जन होते थे। 
  2. राजा, सरदार या धनाढ्य व्यक्तिओं के वैभव, कर्तृत्व का वर्णन करने वाली कविताएँ। इनके गायक भाट और श्रोता संबंधित व्यक्ति, उनके परिवारजन और सगे-संबंधि होते थे। 
  3. लड़ाई, दंगे,डकैती, अकाल, बाढ़ इत्यादि घटनाओं का निवेदन करनेवाली कविताएँ। इनके गायक शाहिर और श्रोता सर्वसाधारण जनता होती थीं। 

जो पोवाडे आज उपलब्ध हैं उनमें सर्वाधिक पुराने पोवाडे छत्रपति शिवाजी महाराज के समय के हैं जिनमें छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके सरदारों के पराक्रम का वर्णन है। अज्ञातदास रचित अफजलखानवध पोवाडा और तुलसीदास रचित सिंहगड पोवाडा बहुत लोकप्रिय है। पेशवाओं के समय पर उनके पराक्रम का वर्णन करने के लिए पोवाडे लिखें गये परंतु पेशवाओं के काल में विलासिता भी बढ़ गई थी अतः पेशवाकालिन पोवाडोंपर लावणी का प्रभाव दिखता है और पोवाडे छोटे होते हैं।बाद में महात्मा जोतीबा फूलेजी ने पोवाडा कला को पुनर्जीवित किया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जनसाधारण को प्रेरणा देने के लिए भी कई शाहिरों ने पोवाडे लिखें। बाद के समय में कई सामाजिक समस्याओं पर भी पोवाडे रचे गए। अमर शेख, अण्णाभाऊ साठे, वसंत बापट आदि लोगों ने लिखे हुए पोवाडे भी प्रसिद्ध हैं।

दशावतार 

दशावतार महाराष्ट्र के कोकण विभाग की लोककला है। कोकण का सिंधुदुर्ग जिला दशावतार का प्रमुख केंद्र है। दशावतार के  दो भाग होते हैं - पूर्वरंग और उत्तररंग। पूर्वरंग में संकासूर, भटजी, गणपती, ऋद्धि, सिद्धि, सरस्वती आदि पात्रों के साथ प्रहसन होता है। उत्तररंग में रामायण और महाभारत के आख्यान नाटक रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं। विभिन्न त्योहारों और पर्वों पर लगने वाले मेलों में दशावतार की मंडलियाँ अपनी कला का प्रदर्शन करती हैं। कोकण में, गाँव गाँव में जाकर दशावतार प्रस्तुत करना देवळी, लिंगायत और गुरव समाज के लोगों का व्यवसाय है। दशावतार के कलाकार यह कला किसी से सीखते नही। उन्हें एकलव्य की तरह अपने आप दशावतार के बारे बारे में जानकारी प्राप्त कर और देख कर इसे सीखना पड़ता है। दशावतार की एक विशेषता यह है कि इसकेे सारे कलाकार पुरूष होते हैंं। दशावतार में महिलाओं का सहभाग नही होता।

भारूड  

महाराष्ट्र में भारूड नामक एक कविता का प्रकार प्रचलित है। भारूड के विषय सामान्य लोगों के जीवन से, उनके रोज के व्यवहार,  रोजगार, रिश्ते, सगे-संबंधियों आदि से जुड़े होते हैं। महाराष्ट्र को संतों की गौरवशाली परंपरा भी प्राप्त है। भारूड संत साहित्य का अहम् हिस्सा है। संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव से लेकर संत तुकडोजी महाराज तक सभीने भारूड की रचना की है परंतु भारूड को चरम लोकप्रियता दिलवाई संत एकनाथजी ने। 

उनके रचे भारूडों के विषयोंमें विविधता दिखाई देती है। सामान्य विषयों के साथ जादूटोणा, दैवी शक्तियाँ, भूत प्रेत आदि विषयों पर भी संत एकनाथ जी ने भारूड लिखे और इन अंधविश्वासों को दूर करने का प्रयास कीया। संत एकनाथ जी का रचा 'एडका' और 'बहुरुपी भारूड अतिशय लोकप्रिय है और उनमें प्रयुक्त रूपक आज की परिस्थिति में भी प्रभावी है अतः राज्य की एड्स निवारण संस्था द्वारा जनजागृति के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। 

भारूड के तीन प्रकार हैं: 

  • भजनी भारूड: भजनी भारूड में गायन और कथा कथन का मिश्रण होता है। 
  • सोंगी भारूड: सोंगी भारूड में कलाकार बहुरुपियों की तरह विविध वेष धारण करते हैं। 
  • कूट भारूड: कूट भारूड में पहेलियाँ होती हैं। 

पहले भारूड में केवल पुरुष ही होते थे लेकिन आजकल स्त्रियाँ भी भारूड प्रस्तुत करती हैं।

तमाशा  

तमाशा महाराष्ट्र की प्रसिद्ध लोककला है। यह नाटक का ही एक रूप है जो मुख्यतः कोल्हाटी समुदाय द्वारा किया जाता है। तमाशा के पाँच भाग होते हैं। 

  • पहला है गण जिसमें गणेश वंदना की जाती है। 
  • दूसरा मुजरा जिसमें दर्शकों का स्वागत किया जाता है। 
  • तीसरा गवळण जिसमें कृष्ण लीलाओं का वर्णन होता है। मुख्यतः कृष्ण और गोपियों की नोंक-झोंक दिखाई जाती है। 
  • गवळण के बाद सांधा बतावणी जो एक प्रहसन के रूप में प्रस्तुत करते हैं। 
  • अंत में वग, जो तमाशा का मुख्य नृत्य है और लावणी के गानों पर किया जाता है। ढोलक, डफ, तुणतुणा, मंजिरा आदि वाद्योंके तालपर इन नृत्यों को प्रस्तुत किया जाता है। 

पहले तमाशा में पुरूष हि स्त्री वेष धारण करते थे। प्रसिद्ध मराठी कवि और कलाकार पट्ठे बापूराव ने सर्वप्रथम महिलाओं को तमाशा में सहभागी किया।

लेझीम 

लेझीम महाराष्ट्र का ऐसा लोकनृत्य है जो नृत्य से अधिक व्यायाम की तरह है अतः स्कूलों में शारीरिक शिक्षण के तौर पर सिखाया जाता है। स्कूलों के कार्यक्रमोंमें तथा सेना और अन्य संस्थाओं के कार्यक्रमों में लेझिम का प्रदर्शन किया जाता है। कई धार्मिक, राजकीय और सामाजिक कार्यक्रमों में भी लेझीम का प्रदर्शन किया जाता है। लेझीम एक झांझ की तरह होता है जिसमें लकडी के दो टुकड़ोंको- एक डेढ़ फीट का और दूसरा छः इंच का, लोहे की चेन से जोड़ा हुआ रहता है। इस चेन में लोहे के सिक्के होते हैं। लकडी के दोनों टुकड़ों को एक दूसरे पर पटकने से आवाज होती है। लेझीम एक समूह नृत्य है जो ढोलकी या डफ के ताल पर किया जाता है। लेझीम में चार स्टेप्स का एक चरण होता है। इन चरणों को दोहराते हुए समूह कभी दो कतारों में तो कभी चार कतारों में आगे बढ़ता है। समूह का मुखिया सीटी बजा कर चरण में बदलाव का संकेत देता है। 1982 के एशियाई खेलों के उदघाटन समारोह में लेझीम का आंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रथम प्रदर्शन हुआ जिसमें महाराष्ट्र के 400 उत्कृष्ट नर्तकों ने भाग लिया था।

उपरोक्त सारी लोककलाओं का स्वरूप सामूहिक है। शायद इसीलिए वे अपना अस्तित्व टिकाकर रखने में सफल हो पाई है। वासुदेव और मानवी शेर नृत्य करने वाले कलाकार भी समय रहते संगठित हो जाते तो ये लोककलाएँ भी लुप्त होने से बच सकती थी।

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टिप्पणियाँ

  1. Very vividly explained the folk art of Maharashtra. Loved reading this post. Jai Maharashtra

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  2. महाराष्ट्र की इतनी लोककलाओं के बारे में अच्छी जानकारी । मुझे बहुत अल्पज्ञान था ।महाराष्ट्र बहुत प्रगतिशील है..शुभकामनाएं..💐

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