पट्टचित्र कला

पट्टचित्र श्रीमती नीता परिहार के सौजन्य से पट्टचित्र ओडिशा और पश्चिम बंगाल की नयनरम्य पारंपरिक चित्रकला है जो कपड़े पर या ताड़ के पत्तों को जोड़ कर उसपर की जाती है। प्राचीन काल में इसे राजाओं महाराजाओं का संरक्षण प्राप्त था। पंद्रहवीं, सोलहवीं शताब्दी में जगन्नाथजी का प्रचार करने के हेतु से पट्टचित्रों का विकास जात्री चित्रों के रूप में हुआ। जात्री चित्र: रथयात्रा में जगन्नाथ जी के दर्शन करने आने वाले भाविकों को जात्री कहते हैं। ये भक्त घर जाते समय इन चित्रों को खरीद कर ले जाते थे ताकि जो नही आ पाये उन्हें भी जगन्नाथ जी का दर्शन हो सके।ये जात्रीचित्र अपने आकारों के अनुसार तीन तरह के होते हैं। टिकली और पदक: यह कपड़े पर बनाये जाते थे और इनका आकार एक इंच या उससे भी कम होता था। एक बडे कपड़े पर बहुत सारे गोलाकार या आयताकार बनाकर उनमें जगन्नाथ जी या सुभद्रा, बलराम और जगन्नाथ जी के चित्रों को बनाकर उन्हें काटकर अलग कर दिया जात...