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महाराजा सयाजीराव गायकवाड़, एक कूटनीतिज्ञ

ब्रिटिश शासनकाल में सभी छोटे बड़े राजा महाराजा अंग्रेजों के अधीन थे। सारे अधिकार अंग्रेजी शासकों के हाथों में थे। राजाओं को निश्चित धनराशि और कुछ निजी सुविधाएँ मिलती थी और वे संतुष्ट होकर ऐशो-आराम से जीवन बिताते थे। मगर एक ऐसे भी राजा थे जिन्होंने देश में ब्रिटिश शासन के दौरान हर क्षेत्र में शानदार काम किया।  वह व्यक्ति बड़ौदा संस्थान के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ हैं। सयाजीराव की एक गरीब किसान के बेटे से एक राजा तक की यात्रा बहुत प्रेरणादायक है।  उन्होंने शिक्षा, नागरिक सुविधाएँ, संस्कृति, खेल, बैंकिंग जैसे कई क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान दिया।  उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए भी पर्दे के पीछे से  कड़ी मेहनत की। सयाजीराव गायकवाड़ का जन्म 11 मार्च, 1863 को महाराष्ट्र के एक गरीब किसान के घर में हुआ था। उनके बचपन का नाम गोपाल था और उनके पिता का नाम काशीराव गायकवाड़ था।  गोपाल का परिवार बड़ौदा राजवंश से संबंधित था। बड़ौदा की महारानी जमनाबाई ने अपने पति महाराज खंडेराव गायकवाड़ की मृत्यु के बाद गोपाल को सिंहासन के लिए अपनाया।  राज्याभिषेक समारोह 27 मई 1875 को ...

प्रार्थना के हाथ

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  कागज़ पर लकीरें खींचने की आदत मुझे बचपन से ही थी। स्कूल और काॅलेज में पढ़ते समय सभी काॅॅॅपियों केे पिछेसे आधे पन्ने तरह तरह के फूलों और चेहरोंं से भरेे रहते थे। उम्र के करीब पैैैैंतालिस वर्ष पूूर्ण होने के बाद अपनी इस आदत की ओर थोड़ा ध्यान देने की इच्छा हुई। उसी समय पति का तबादला मुंबई हुआ। मुंबई में रहते हुए अपनी इस इच्छा को पूर्ण करने का अवसर भी मुझे मिला। मै और मेरी एक समविचारी सहेली अजिता खडके, हम दोनों ने कलानिकेतन संस्था द्वारा संचालित चित्रकला क्लास में दाखिला लिया जहाँ हमने  वारली चित्रकला की बारीकियां सिखी। बाद में नागपुर आने पर श्रीमती सुगुणा राव जैसी प्रतिभाशाली कलाकार का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। राव मॅडम ने रंग, ब्रश और कैनवास के साथ कई प्रयोग सिखाये। साथ ही उन्होंने इस बात के लिए भी प्रोत्साहित किया कि मैं नामवंत चित्रकारों के बारे में जानकारी प्राप्त करूँ और उनके चित्रों का अभ्यास करूँ। इसी अभ्यास के दौरान एक चित्र और उससे संबंधित कहानी जो मन को भा गयी वह चित्र है 'प्रार्थना के हाथ'। 'प्रार्थना के हाथ' इस चित्र को 'Study of the hands of an Apostle...